24.6.05

राष्ट्रीय एकता का सेतु

सूरज के सातों रंग
मिलते हैं जब एक साथ
तभी तो होता है प्रकाश
छूमंतर हो जाती है
अनन्त तमराशि
मुदित होती है
इकाइयों में बिखरी
समूची मानवता
इकाइयों से खिसक कर
दहाइयों, सैकड़ों,
हजारों, लाखों
और करोड़ों में
जब
होती है एकाकार
तभी तो होता है
राष्ट्रीय एकता का
जीवंत प्रतिमान साकार
कन्याकुमारी में
होने वाली
लहरों की पदचाप
सुन लेता है
संवेदनशील हिमालय
उस के अन्तस की पीड़ा
पिघलती है
और
बह उठती है
पतित पावनी गंगा बनकर
करोड़ो की पीड़ा से
द्रवित होते हैं करोड़ों
करोड़ों के आनन्द से
प्रफुल्लित भी
होते हैं करोड़ों
राष्ट्रीय एकता का
इतना विशाल सेतु
है भी तो नहीं
विश्व में
और कहीं
तभी तो बनाया है
प्रकृति ने
अपना
पालना यहीं॥
***

-डॉ॰जगदीश व्योम
ggggggggggggg

1 comment:

Himkar Shyam said...

बहुत सुंदर